Kalpanalok भाग 10- कल्पनालोक का प्रवेशद्वार
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Praveshdwar |
🌳 जादुई जंगल की रहस्यमय कहानी – भाग 10
✨ शीर्षक: कल्पनालोक का प्रवेशद्वार
पिछले भाग में:
आरव और चिंटू ने एक झील के बीच खड़े रहस्यमयी आईने में अपने भीतर का सच देखा। आरव को अपने दादा की याद आई और फिर खुला एक चमकदार दरवाज़ा — जो “सच्चे जादू की शुरुआत” का संकेत था। अब वे उस दरवाज़े की ओर बढ़ चुके हैं...
🚪 भाग 10: कल्पनालोक का प्रवेशद्वार
जैसे ही आरव और चिंटू ने उस झील में बने जादुई दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाए, आईना उनके पीछे गायब हो गया। दरवाज़ा अब और भी चमकने लगा — मानो उन्हें पहचान रहा हो।
आरव ने दरवाज़े की मुड़ी हुई नक्काशी को छुआ।
अचानक, दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला — कोई धक्का नहीं, कोई आवाज़ नहीं... बस एक उजली रोशनी और हवा में गूंजता एक मंत्र:
"कल्पनालोक में स्वागत है, लेकिन यहाँ हर सोच एक हक़ीक़त बनेगी। संभलकर सोचो।"
अंदर का संसार कोई सामान्य जादुई जगह नहीं थी —
यहाँ विचारों का आकार था, भावनाओं की गंध, और यादों की आवाज़ें।
- पेड़ जो डर में काँप रहे थे
- फूल जो हँस रहे थे
- और एक पुल जो तब तक नहीं बना, जब तक उन्होंने उस पर चलने का इरादा नहीं किया
यह था — कल्पनालोक, जहाँ सोच ही सब कुछ थी।
बीचों-बीच एक पर्वत दिखाई दिया — उसकी चोटी पर एक किताब हवा में तैर रही थी।
आरव ने पढ़ा:
"कल्पना-ग्रंथ — जो इसे छुएगा, वही अपनी कल्पना की दुनिया बना सकेगा।"
चिंटू ने चौंकते हुए कहा, “तो अब हम खुद इस दुनिया के निर्माता बन सकते हैं?”
आरव मुस्कराया — लेकिन उस मुस्कान में डर भी था।
उसी क्षण उन्हें हवा में लिखा एक वाक्य दिखा:
“जिसने कल्पनालोक को बदला, उसे पहले खुद को बदलना पड़ा।”
अगले भाग में:
क्या आरव कल्पना-ग्रंथ को छू पाएगा? और क्या वो कल्पनालोक को गढ़ने के लिए तैयार है — या उसे पहले अपने भीतर की किसी अधूरी सच्चाई से गुजरना होगा?
🧩 जारी है…
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