Kalpanalok भाग 11: कल्पना-ग्रंथ का रहस्य

 

Kalpanagranth 

🌳जादुई जंगल की रहस्यमय कहानी – भाग 11


शीर्षक: कल्पना-ग्रंथ का रहस्य


पिछले भाग में:

आरव और चिंटू ने कल्पनालोक के दरवाज़े को पार किया और एक विचित्र दुनिया में पहुँचे जहाँ विचारों का आकार था, भावनाओं की गंध थी, और यादें आवाज़ बनकर गूंज रही थीं। यहाँ उन्हें दिखी – हवा में तैरती हुई एक रहस्यमयी किताब – कल्पना-ग्रंथ, लेकिन जैसे ही उन्होंने उसे छूने की कोशिश की, हवा भारी हो गई और हर दिशा में अजीब-सी फुसफुसाहटें गूंजने लगीं...



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📖 भाग 11: कल्पना-ग्रंथ का रहस्य


आरव ने ग्रंथ की ओर हाथ बढ़ाया, लेकिन अचानक एक शक्ति ने उसे पीछे धकेल दिया।


चिंटू (डरते हुए): “ये... ये ग्रंथ हमें स्वीकार नहीं कर रहा... क्या ये किसी का इंतज़ार कर रहा है?”


हवा में एक तेज़ गूंज उठी — मानो कोई पुरानी आत्मा बोल रही हो:


> “कल्पना-ग्रंथ सिर्फ़ उसे स्वीकार करता है

जो अपनी कल्पनाओं को नियंत्रित कर सकता है,

न कि उनसे नियंत्रित हो।”




आरव सोच में पड़ गया।

वह जानता था — उसके भीतर कई डर, अधूरी इच्छाएं, और सवाल हैं। वह ये भी समझ रहा था कि कल्पनालोक में केवल सोच से सब कुछ बदल सकता है — पर अगर सोच बिखरी हुई हो, तो...?



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⛰️ एक गहरी गुफा का प्रवेश


कल्पना-ग्रंथ के ठीक पीछे ज़मीन फटती है और एक पत्थर उभरता है:


> “ज्ञान की गुफा —

जहां हर विचार से तुम्हारी परीक्षा होगी।

सफल हुए तो कल्पना-ग्रंथ तुम्हारा होगा।”




आरव और चिंटू गुफा के भीतर जाते हैं। अंदर दीवारों पर चल रहे विचार, दृश्य, और यादें — जैसे उनका मन बाहर आ गया हो।


चिंटू को उसका बचपन दिखता है — अकेलापन, डर


आरव को दिखता है — उसकी जिम्मेदारियाँ, असफलताएँ, ग़लतियाँ



हर भावना एक प्रश्न बनकर गूंजती है:


> “क्या तुम खुद को माफ़ कर सकते हो?”

“क्या तुम कल्पना से भागना नहीं, उसे दिशा देना जानते हो?”

“क्या तुम्हारा सपना सिर्फ़ तुम्हारा है, या दूसरों का भी?”





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🌠 अंत में, परीक्षाएँ पूरी


अचानक, गुफा में शांति छा जाती है। दीवारों से एक नीली रेखा निकलकर हवा में जाती है और सीधे कल्पना-ग्रंथ को छूती है।


अब वह ग्रंथ फिर से तैरता है — लेकिन इस बार **

ज़रूर!
अब कहानी को वहीं से आगे बढ़ाते हैं, जहाँ कल्पना-ग्रंथ दोबारा सक्रिय हो जाता है...


🌳 जादुई जंगल की रहस्यमय कहानी – भाग 11 (जारी)

कल्पना-ग्रंथ का रहस्य – भाग 2

जहाँ पिछला भाग छूटा:
आरव और चिंटू ने "ज्ञान की गुफा" में खुद के डर, यादों और सवालों से सामना किया। अब परीक्षाएँ पूरी हो चुकी थीं, और कल्पना-ग्रंथ दोबारा चमकने लगा था — नीली रेखाएँ उसे छू रही थीं।


📘 कल्पना-ग्रंथ का खुलना

ग्रंथ हवा में स्थिर हो गया और धीरे-धीरे उसके पन्ने पलटने लगे — लेकिन किसी हाथ से नहीं, आरव की सोच से।

हर पन्ने पर सिर्फ़ एक ही शब्द लिखा था —

“कल्पना”

लेकिन जैसे ही आरव ने ध्यान लगाया, वो शब्द आकार बदलने लगे:

  • एक पन्ना बना – एक विशाल पेड़ 🌳
  • दूसरा बना – एक महल जो आसमान में तैरता है 🏰
  • तीसरा बना – अंधकार में डूबा एक द्वार 🚪

चिंटू हैरान:
“भाई… ये तो हमारी सोच की दुनिया बना रहा है!”

आरव धीरे-धीरे बोलता है:
“शायद अब हमें अपनी कल्पना से ही तय करना है कि कल्पनालोक क्या बनेगा...”


⚠️ मगर तभी...

कल्पना-ग्रंथ अचानक तेज़ी से घूमने लगा।
हवा में गूंजती है एक डरावनी हँसी —

“तुमने सिर्फ़ आधा अधिकार पाया है… पूरा तभी मिलेगा जब तुम भय के द्वार को पार करोगे!”

हवा में उभरता है एक अंधकारमय दरवाज़ा — उसके चारों ओर छायाएँ मंडरा रही हैं।

आरव का चेहरा गंभीर हो गया:
“ये रहा अंतिम द्वार — जहाँ हमें अपने सबसे गहरे डर से गुजरना होगा…”

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