Kalpanalok भाग 13-आत्मप्रकाश का मंदिर




🌳 जादुई जंगल की रहस्यमय कहानी – भाग 13


शीर्षक: आत्मप्रकाश का मंदिर

पिछले भाग में:
आरव और चिंटू ने "विचारों की दुनिया" में जाना सीखा कि हमारी सोच ही हमारी सच्चाई बना सकती है। जैसे-जैसे उन्होंने सकारात्मक और नकारात्मक विचारों के प्रभाव को समझा, एक रहस्यमयी मार्ग खुला जो उन्हें एक नई दुनिया में ले आया – आत्मप्रकाश के मंदिर की ओर।


🛕 आत्मप्रकाश का मंदिर

मंदिर किसी स्वप्न जैसा लग रहा था – चमकदार, शांत, और भीतर से मंत्रों की गूंज सुनाई दे रही थी। लेकिन इसके प्रवेशद्वार पर कोई दरवाज़ा नहीं था। वहाँ बस लिखा था:

"जो स्वयं को देख सके, वही भीतर प्रवेश कर सकता है।"

चिंटू ने हैरानी से कहा, “मतलब हमें अपने अंदर झाँकना होगा?”


🔍 आत्मदर्पण की शक्ति

तभी मंदिर के बीचों-बीच एक विशाल चमकता हुआ दर्पण प्रकट हुआ –
"आत्मदर्पण"

जैसे ही आरव ने उसमें देखा, वह स्तब्ध रह गया। उसे अपने जीवन की सबसे बड़ी गलतियाँ, झूठ, डर, और पछतावे दिखाई दिए। फिर कुछ पल बाद उसने अपनी अच्छाई, दया, साहस और विश्वास भी देखे।

चिंटू की आँखें भर आईं – “मैंने कभी सोचा ही नहीं कि मेरे अंदर भी इतनी ताकत है…”


🧘 मंदिर का संदेश

अब मंदिर में एक तेज प्रकाश फैला और एक प्रकाशमयी आत्मा प्रकट हुई। वह बोली:

"तुमने अपने भीतर की सच्चाई को देखा। यही कल्पनालोक की पहली कुंजी है।"

"पर अभी रास्ता खत्म नहीं हुआ। अगली चुनौती है – छाया घाटी। वहाँ तुम्हारे डर, संदेह और परछाइयाँ तुम्हारे सामने आकार लेंगी।"


🚪 अगला द्वार

जैसे ही आत्मा ने अपना हाथ ऊपर उठाया, मंदिर की ज़मीन हिलने लगी और एक अदृश्य दरवाज़ा नीचे से ऊपर की ओर उभर आया। दरवाज़े पर लिखा था:

"जहाँ प्रकाश खत्म होता है, वहीं छाया शुरू होती है।"

आरव और चिंटू तैयार थे – अब वे सिर्फ खोजकर्ता नहीं, बल्कि जागरूक योद्धा बन चुके थे।


जारी रहेगा…
➡️ अगले भाग में पढ़ें: "छाया घाटी की परछाइयाँ"
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