Kalpanalok भाग 14: छाया घाटी की परछाइयाँ
🌳 जादुई जंगल की रहस्यमय कहानी – भाग 14
शीर्षक: छाया घाटी की परछाइयाँ
पिछले भाग में:
आरव और चिंटू ने आत्मप्रकाश के मंदिर में स्वयं की सच्चाई को जाना और आत्मदर्पण के माध्यम से अपने भीतर की अच्छाई और कमजोरी को स्वीकार किया। अब उनके सामने खुलता है एक और रहस्यमय मार्ग – छाया घाटी।
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🌫️ प्रवेश द्वार
मंदिर से निकलते ही उन्होंने एक गहरी और अंधेरी घाटी को देखा, जहाँ चारों ओर धुंध फैली हुई थी। हवा भारी लग रही थी और ज़मीन पर चलना कठिन।
घाटी के द्वार पर लिखा था:
"यहाँ हर सोच बनेगी तुम्हारी परछाईं।"
चिंटू थोड़ा घबरा गया, लेकिन आरव ने उसका हाथ थाम लिया।
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🕶️ पहली परछाईं: आरव का डर
घाटी के अंदर जैसे ही वे आगे बढ़े, सामने अचानक एक आकृति प्रकट हुई — बिलकुल आरव जैसी दिखने वाली, लेकिन आँखों में डर, क्रोध और भ्रम था।
परछाईं बोली —
"तू मुझे पहचानता है? मैं तेरे भीतर का डर हूँ, तेरी असफलताओं की आवाज़।"
आरव ने गहरी सांस ली और बोला —
"हां, मैं तुझे पहचानता हूं। लेकिन अब तुझसे डरता नहीं।"
जैसे ही आरव ने स्वीकार किया, परछाईं धीरे-धीरे धुएँ में बदलकर गायब हो गई।
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🌑 दूसरी परछाईं: चिंटू का अकेलापन
अब चिंटू के सामने एक छोटी मगर गहराई लिए परछाईं उभरी। वह बोली —
"तेरे दोस्त तुझे छोड़ देंगे, तू कभी खास नहीं था।"
चिंटू की आंखों में आँसू आ गए, लेकिन फिर आरव ने उसका हाथ थामा।
चिंटू ने धीमे से कहा —
"हो सकता है मैं हमेशा सही न रहा हूं, लेकिन मैं अब खुद को स्वीकार करता हूं।"
परछाईं मुस्कुराई… और फिर रोशनी में बदल गई।
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🔮 घाटी का रहस्य
घाटी के अंत में एक शिलालेख दिखाई दिया:
"जिसने अपनी परछाइयों को अपनाया, वही उजाले की राह का अधिकारी बनता है।"
एक चमकता हुआ द्वार उनके सामने खुला। अब अगली राह उन्हें “परिवर्तन की नदी” की ओर ले जा रही थी — जहाँ कल्पनालोक का असली रूप बदलने वाला था।
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जारी रहेगा…
➡️ अगले भाग में पढ़ें: "परिवर्तन की नदी"
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