Kalpanalok भाग 18-भावनाओं की अग्निपरीक्षा



🌳 जादुई जंगल की रहस्यमय कहानी – भाग 18



शीर्षक: भावनाओं की अग्निपरीक्षा

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पिछले भाग में:


कल्पनाग्रंथ का जागरण हो चुका था। आरव और चिंटू ने उसमें अपना अतीत, वर्तमान और संभावित भविष्य देखा। ग्रंथ ने उन्हें संकेत दिया — अब अगला द्वार है: भावनाओं की अग्निपरीक्षा।



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🌟 कहानी शुरू होती है:


कल्पनाग्रंथ का अंतिम पृष्ठ बंद होते ही चारों ओर की रोशनी बदल गई। अब हर दिशा में लहरें सी उठ रहीं थीं — जल नहीं था, पर भावनाओं की लहरें थीं।


"ये जगह... इतनी शांत लेकिन भीतर कुछ बेचैन कर देने वाला है..." चिंटू बोला।


आरव ने धीरे से कहा, "हमें चेतावनी दी गई थी — यहाँ हमारी भावनाओं की अग्नि में परीक्षा होगी।"


अचानक ज़मीन फटी, और उनके नीचे खुल गया एक लाल-नारंगी रंग का प्रकाशमय भाव-गृह — एक कमरा जिसमें हर दीवार पर उनके जीवन की भावनाएँ उभरी हुई थीं।


दीवारें बोलने लगीं:


> “डर – जो तुझे पीछे खींचता है…”

“क्रोध – जो तुझे भटका सकता है…”

“प्रेम – जो तुझे कमजोर भी बना सकता है…”




चिंटू की आँखों के सामने उसकी माँ की यादें, खोया हुआ बचपन, और उपेक्षित भावनाएँ उभर आईं। वो काँप गया।


आरव को दिखा — अपने पिता की कठोरता, अपनी असुरक्षा और अपनी हार का डर।


"मुझे डर लगता है कि मैं कल्पनालोक को बचाने लायक नहीं हूँ..." आरव बुदबुदाया।


"और मुझे लगता है कि मैं केवल एक सहायक हूँ, असली नायक नहीं..." चिंटू ने कहा।


तभी एक ज्वाला उठी और एक आवाज आई:


> "जो भावनाओं को स्वीकारता है, वही उनकी अग्नि में जलकर निखरता है।"




आरव ने आँखें बंद कीं, अपने डर को अपनाया, अपने आंसुओं को बहने दिया... और ज्वाला से होकर पार चला गया।

चिंटू ने अपनी कमजोरियों को गले लगाया... और अग्नि उसे भी छू नहीं सकी।


दोनों अग्निपरीक्षा पार कर चुके थे।


उनके सामने खुला एक नया दरवाज़ा — जिसमें लिखा था:


> "अब जब भावनाएं शुद्ध हो गईं...

कल्पनालोक का अंतिम रहस्य तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है।"


🔮 अगले भाग में:


"अंतिम द्वार: सत्य और भ्रम" – जहाँ आरव और चिंटू को करना होगा सबसे बड़ा चुनाव:

क्या कल्पनालोक को बचाया जा सकता है… या उसे त्यागना ही एकमात्र मार्ग है?


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