Kalpanalok भाग 7: दर्पणों की घाटी
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Darpano Ki Ghati |
🌳 जादुई जंगल की रहस्यमय कहानी – भाग 7
✨ शीर्षक: दर्पणों की घाटी
पिछले भाग में:
आरव और चिंटू आत्मा की झील पर पहुँचे। वहाँ आत्मा ने उन्हें तीन चट्टानों पर लिखे शब्द दिखाए – साहस, सच्चाई, और सेवा। एक रहस्यमयी संदेश के साथ आत्मा गायब हो गई, और दोनों दोस्त एक नए रास्ते की ओर चल पड़े...
🌌 भाग 7: दर्पणों की घाटी
झील से निकलकर आरव और चिंटू घने जंगल में आगे बढ़े। आत्मा के निर्देश पर वे एक तंग रास्ते पर चले जा रहे थे, जहाँ पेड़ कुछ अधिक ही शांत और रहस्यमय लग रहे थे।
"चिंटू, क्या तूने वो देखा?" आरव ने धीमे से कहा।
"क्या?"
"हर पेड़ पर जैसे हमारी परछाई हिल रही हो... मगर हम तो हिले ही नहीं!"
जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए, सामने एक खुला मैदान आया – चारों ओर लंबी-लंबी चमकदार शीशे जैसी दीवारें। यह थी दर्पणों की घाटी।
हर दर्पण में अलग-अलग दृश्य दिख रहे थे –
- एक दर्पण में चिंटू अकेला जंगल में रो रहा था
- दूसरे में आरव क्रोधित होकर कुछ तोड़ रहा था
- तीसरे में दोनों किसी युद्ध में भाग ले रहे थे
"ये क्या है?" चिंटू काँपते हुए बोला।
तभी एक दर्पण से आवाज़ आई,
"जो तुम हो, वो तुम्हें दिखाई दे रहा है। जो तुम बनोगे, वो तुम्हारे निर्णय तय करेंगे..."
अचानक एक दर्पण फट गया। उसके भीतर से एक काला धुआँ निकला और चिंटू की ओर बढ़ा। आरव ने झट से 'साहस' की चट्टान से उठाया हुआ पत्थर दिखाया — वह चमक उठा और धुआँ उसी में समा गया।
दूसरे दर्पणों में दिखने वाले दृश्य बदलने लगे —
अब उनमें आरव और चिंटू मलहम बांट रहे थे, पेड़ों को बचा रहे थे, और प्रकाश फैलाते दिख रहे थे।
"हमारे कर्म बदलते ही हमारी छवि बदल गई," आरव ने मुस्कराते हुए कहा।
अब सामने एक द्वार प्रकट हुआ — कांच से बना, मगर स्थिर और चमकदार।
उसके ऊपर लिखा था:
"अगला चरण: आत्म-पहचान की परीक्षा"
दोनों एक-दूसरे की ओर देख मुस्कराए और उस द्वार की ओर बढ़ चले…
🔚 अगले भाग में:
आरव और चिंटू उस द्वार के पार एक ऐसी जगह पहुँचते हैं, जहाँ हर चीज़ उनकी सोच से बनती है — कल्पनाओं की दुनिया। लेकिन हर कल्पना की एक कीमत होती है...
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