Kalpanalok भाग 20- कल्पनालोक का हृदय




🌳 जादुई जंगल की रहस्यमय कहानी – भाग 20

शीर्षक: कल्पनालोक का हृदय


पिछले भाग में:
अंतिम द्वार पर आरव और चिंटू ने भ्रम और सत्य के बीच चयन किया। आत्मचिंतन और जागरूकता के बाद उन्होंने सच्चाई को अपनाया और द्वार पार कर पहुँचे हैं — कल्पनालोक के हृदय में।


इस भाग में:

कल्पनालोक का हृदय — वह स्थल जहाँ संपूर्ण जादू जन्म लेता है, जहाँ हर कल्पना की जड़ है, और जहाँ हर स्मृति का मूल स्रोत बहता है।

आरव और चिंटू के सामने फैला है एक अनंत प्रकाशमंडल, जो हर दिशा में स्पंदित हो रहा है।
बीचों-बीच एक विशाल कमल है — जिसकी पंखुड़ियों पर जड़े हैं पुरातन प्रतीक, और केंद्र में तैर रहा है कल्पनाग्रंथ

जैसे ही दोनों उसके पास पहुँचते हैं, चार दिशाओं से आती हैं चार चेतन आवाज़ें —

  • एक अतीत की,
  • एक भविष्य की,
  • एक उनके भय की,
  • और एक उनकी आशा की।

कल्पनाग्रंथ अचानक खुलता है और उसकी पृष्ठों से निकलती हैं दोनों की कहानियाँ — उनका बचपन, उनके डर, उनकी चाहतें और वह सब जो उन्होंने इस यात्रा में सीखा।

तभी प्रकट होती है एक दिव्य स्त्री आकृति — जिसे सभी "कल्पना-मातृका" कहते हैं।
वह कहती है:

“कल्पनालोक की आत्मा तब जागती है जब कोई अपनी सीमाओं को पहचानकर भी आगे बढ़ता है।
तुम दोनों ने सत्य को अपनाकर जादू को पुनः जीवित किया है।”

अब आरव और चिंटू को अंतिम कार्य सौंपा जाता है —
कल्पनाग्रंथ को पुनः जाग्रत करना।
लेकिन उसके लिए उन्हें अपने संपूर्ण ‘स्व’ को समर्पित करना होगा — अपनी पहचान, अपनी सीमाएं, और अपने मोह।

दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़ते हैं, आँखें बंद करते हैं, और पूरे मन से कहते हैं:
“हम कल्पना में विश्वास करते हैं… और सत्य में समर्पण।”

अचानक कल्पनाग्रंथ से तेज़ रोशनी निकलती है… और पूरा हृदय मंदिर प्रकाश से भर उठता है।


🔮 अगले भाग में:
भाग 21: जागरण का अनुग्रह
क्या कल्पनाग्रंथ की शक्ति से कल्पनालोक का संतुलन बहाल होगा? और आरव-चिंटू की अंतिम परीक्षा क्या होगी?



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